ताड़का वध, अहिल्या उद्धार, धनुष यज्ञ, सिया स्वयंवर, धनुष भंग, विवाह जैसी लीलाओं को इन्हीं आंखों से देखती है. आंखें जो धनुष भंग देखकर हर्षित हो जाती हैं तो यही आंखें सीता की विदाई का गीत सुनकर जनक जी के साथ रो पड़ती हैं. दृष्य न बदलता website तो विचार और भाव न जाने कब तक मिथिला में ही रुके रह जाते.
आपको यकीन नहीं होगा, नवरात्रि के इस पावन समय में देशभर के गली-मुहल्लों तक में रामलीलाएं हो रही हैं, इस बीच राजधानी दिल्ली के दिल में एक मंच ऐसा भी है जिस पर बीते सात दशकों से श्रीराम कथा सुनाई, दिखाई और गाई जा रही है.
इसके बाद जो हुआ वो इतिहास के पन्नों पर कुछ यूं बयां हैं-
कहा जाता है कि प्रधानमंत्री नंगे पांव और नंगे सिर नादिर शाह के सामने पेश हुए और ये शेर पढ़ा-
भक्तों के मुताबिक जब बाबा भोले अपने अनुयायियों को प्रवचन देते थे तो उनके बगल वाली कुर्सी पर उनकी मामी बैठी होती हैं. हालांकि उनकी मामी कभी प्रवचन नहीं करती हैं.
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ये रामलीला बाकियों से है अलग, मुख्य रोल निभाते हैं ये मुस्लिम कलाकार; देखें बेहद खास है लखनऊ की रामलीला, अस्त्र-शस्त्र खींचते है लोगों का ध्यान म्यांमार में थिरी रामा, थाईलैंड में रमाकियेन और इंडोनेशिया में काकविन रामायण.
रतन टाटा के परिवार को कितना जानते हैं आप?
उन्होंने लिखा, "वाराणसी में नामांकन फॉर्म प्राप्त करने की प्रक्रिया इतनी जटिल कर दी गई है कि फॉर्म लेना बहुत ज़्यादा मुश्किल हो गया है, घंटों लाइन में लगने के बाद चुनाव कार्यालय से कहा गया कि आप दस प्रस्तावकों के आधार कार्ड की कॉपी (हस्ताक्षर समेत) और उनके फ़ोन नंबर पहले दीजिए तभी फॉर्म के लिये ट्रेज़री चालान फ़ॉर्म मिलेगा.
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एक बार नाटिका जो शुरू हुई फिर तो मृदंग की थाप के साथ पैरों की चाप संतुलन बनाती जाती है और जैसे-जैसे उंगलियों में हलचल होती, आंखों की पुतलियां तक उसी इशारों में घूम जाती हैं. इनके साथ ही राग का सामंजस्य... भक्ति रस है तो राग पीलू और तिलंग. आह्लाद है तो भूपाली और खमाज, करुणा, वियोग और विषाद तो राग भैरव-भैरवी, जब जैसी प्रकृति तब वैसा राग और वैसे ही भाव.
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भगवान शिव ने शस्त्रों की परंपरा की शुरुआत की थी. परशुराम जी को सभी प्रकार के शस्त्र देकर भगवान शिव ने उन्हें सशक्त बनाया. विजयदशमी पर शस्त्र पूजन की परंपरा का पालन करना आवश्यक है, ताकि ये सांस्कृतिक मूल्य जीवित रहें. मंदिर प्रशासन ने बताया कि ये परंपराएं अत्यंत प्राचीन हैं, और बाबा विश्वनाथ के धाम में हमेशा से इनका पालन होता रहा है.
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